A-स्कूलों में मुसलमानों की संख्या कम, सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की संख्या कम, मुस्लिम डॉक्टरों एवं इंजीनियरों की संख्या कम, मुस्लिम नेताओं एवं जनप्रतिनिधियों की संख्या कम, लेकिन जेलों में मुस्लिम क़ैदियों की संख्या देश में उनकी आबादी के अनुपात से कहीं अधिक. आख़िर ऐसा क्यों है? क्या मुसलमान चोरी, डकैती, क़त्ल एवं बलात्कार में माहिर होते हैं? क्या देश में ऐसी कोई जगह या संस्था है, जहां पर उन्हें अपराधों का प्रशिक्षण दिया जाता है? अगर नहीं तो फिर देश की जेलों में अपराध के अनगिनत मामलों में मुस्लिम कैदियों की संख्या अधिक क्यों है? आख़िर क्यों मुसलमान ही पुलिस का सबसे पहला संदिग्ध होता है?
B:देश के मीडिया ने भी मुसलमानों की छवि को सबसे ज़्यादा धूमिल किया है. मीडिया की हालत यह है कि मुसलमानों की समस्याओं से संबंधित ख़बरें एवं रिपोर्टें तो कम देखने या पढ़ने को मिलती हैं, लेकिन अगर कोई मुसलमान आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त पाया जाता है तो कई-कई दिनों तक टीवी पर उसके बारे में रिपोर्टें पेश की जाती हैं, अख़बारों के पहले पन्ने पर उस ख़बर को प्रकाशित किया जाता है. मीडिया के इस रवैये में बदलाव आना चाहिए और उसे मुसलमानों की उन समस्याओं पर भी ध्यान देना चाहिए, जिनका निराकरण करके उन्हें शैक्षणिक, आर्थिक एवं सामाजिक पिछड़ेपन से उबारा जा सके.
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http://www.chauthiduniya.com/2012/08/growing-muslim-population-in-prisons.html
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