दुश्मन से यारी–राम पुनियानी
?क्या अल्पसंख्यकों को मोदी एण्ड कंपनी के जाल में फंसना चाहिए
राम पुनियानी, लेखक आई.आई.टी. मुम्बई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।
सन् 2002 के कत्लेआम के बाद, भारत, और विशेषकर गुजरात की राजनीति में एक नए सितारे का उदय हुआ-नरेन्द्र मोदी का। उनकेप्रचार तन्त्रके अथक प्रयासों से उनकी छवि एक ऐसे नेता की बना दी गयी जोआर्थिक विकास का पुरोधाहै, जिसे भ्रष्टाचार छू तक नहीं गया है और जो कड़े कदम उठाने से डरता नहीं है।
समाज के एक बड़े हिस्से ने इस प्रचार को आँख मूँदकर निगल लिया है।मोदी ने भाजपाके अन्दर भी दादागिरी कर, स्वयं को सन् 2014 के चुनाव के लिये गठितचुनाव अभियान समितिका अध्यक्ष घोषित करवा लिया और अब वे इशारों ही इशारों में यह कह रहे हैं कि वेभाजपा-एनडीएके प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार हैं। इसी सिलसिले में वे मुसलमानों कोअपनी ओर आकर्षित करने के लिये सम्मेलनों का आयोजन कर रहे हैं। वे भाजपा केनेताओं को भी यह सलाह दे रहे हैं कि वे अल्पसंख्यकों को स्वयं को जोड़ें।
इसी सिलसिले में, अहमदाबाद में विभिन्न समुदायों के लगभग 200 सामाजिककार्यकर्ताओं और विद्वानों का सम्मेलन, हाल (जून 2013) में आयोजित कियागया। प्रतिभागियों में से 30 मुसलमान थे। कई मुस्लिम नेताओं, कार्यकर्ताओंऔर विद्वानों ने आयोजकों द्वारा बहुत जोर दिये जाने पर भी, सम्मेलन मेंहिस्सा लेने से इंकार कर दिया। उनका तर्क था कि मुसलमान नेताओं को अपनेसम्मेलन में बुलाकर, मोदी अपनी साख बढ़ाना चाहते हैं। परन्तु किसी भीसमुदाय या समूह के सभी लोगों के विचार एक से नहीं होते। कुछ मुस्लिम नेताओंने सम्मेलन में भाग लेना स्वीकार कर लिया। उनमें से एक, सैयद जफर महमूद नेसम्मेलन में एक विस्तृत प्रस्तुतिकरण दिया। सम्मेलन से पहले महमूद से पूछागया कि मोदी की नीतियों के कटु आलोचक होने के बावजूद, वे बैठक में हिस्साक्योंकि ले रहे हैं। इस पर उनका उत्तर था कि उनसे यह प्रश्न तब पूछा जायेजब वे बैठक में अपनी बात रख चुकें। महमूद, सच्चर समिति में विशेषकर्तव्यस्थ अधिकारी थे और वर्तमान में‘ज़कात फाउण्डेशन ऑफ इंडिया’के अध्यक्ष हैं।
शायद उन्होंने सम्मेलन में भागीदारी करना इसलिये उचित समझा होगा क्योंकिइससे उन्हें अपने समुदाय की बदहाली से मोदी को परिचित करवाने का मौकामिलता और वे मुसलमानों की समस्याओं को सामने ला पाते। महमूद ने अपनेप्रस्तुतिकरण में मुस्लिम समुदाय की वर्तमान हालत पर विस्तार से प्रकाशडाला और भाजपा की उसकी नीतियों के आधार पर कड़ी आलोचना की। उनकाप्रस्तुतिकरण शोधपूर्ण था। उन्होंने भाजपा को यह सलाह भी दी कि आने वालेसमय में उसे क्या करना चाहिये। उनकेप्रस्तुतिकरणकासार-संक्षेपयह था किभाजपा, विचारधारात्मकस्तर पर हीमुस्लिम-विरोधीहै। महमूद ने केवल देश के वंचित मुसलमानों के लिये न्याय और संवैधानिकअधिकारों की माँग ही नहीं की; उन्होंने भाजपा की अधिकृत वेबसाइट पर उपलब्धसामग्री के आधार पर यह दर्शाया कि भाजपा, मुसलमानों से किस हद तक नफरत करतीहै। जैसे, उन्होंने कहा किभाजपा की वेबसाइटपर उपलब्ध एक लेख, जिसका शीर्षक है, ‘‘हिन्दुत्व: महान राष्ट्रीयतावादी विचारधारा’’,मुसलमानों के प्रति नफरत और उनके बारे में भड़काऊ बातों से भरपूर हैं। एक अन्य लेख, जिसका शीर्षक है‘‘गिव अज़ दिस डे अवर सेंस ऑफ मिशन’व जिसेएमव्ही कामथने लिखा है, में ‘मुसलमानों से आह्वान किया गया है कि वे हिन्दू नाम रखेंऔर मुस्लिम महिलाओं को कहा गया है कि वे मंगलसूत्र पहनें।’ जिस तीसरे लेखसे उन्होंने उद्धृण प्रस्तुत किये उसका शीर्षक है‘‘सेमिटिक मोनो थिएजम’’ (यहूदी एकेश्वरवाद)।इस लेख में मुसलमानों और इस्लाम को पूरी दुनिया के लिये समस्या बताया गयाहै। लेख कहता है, ‘‘हम सबको यह समझना होगा कि परंपरावादी औरपरिवर्तन-विरोधी इस्लामिक समाज, भारत के लिये एक बड़ी समस्या है। इस्लाम केइस चरित्र को समाप्त कर समावेशी हिन्दुत्व की स्थापना की जानी आवश्यकहै।’’
यहाँ तक तो सब ठीक है। ये सारी बातें सही हैं और बिना किसी शक-शुब्हे केमुस्लिम-विरोधी हैं। मुस्लिम समुदाय की हालत का बयान करते हुये महमूद नेयह माँग की कि उनकी बेहतरी के लिये नई योजनाएं लागू की जायें और प्रभावीकदम उठाये जायें। उन्होंने मोदी से माँग की किसच्चर समिति की रपटको लागू किया जाये। गुजरात उन चंद राज्यों में से एक है जो मुस्लिमविद्यार्थियों को वजीफा देने के लिये केन्द्र द्वारा उपलबध करवाई गयीधनराशि को उपयोग किये बिना वापस लौटाता आ रहा है। यहाँ यह भी बताते चलें किएक अन्यभाजपा मुख्यमन्त्रीने भी यह घोषणा की है कि वेसच्चर समिति की सिफारिशों को लागू नहीं करेंगे। महमूद ने अहमदाबाद मेंमुस्लिम समुदाय के बुरे हाल का भी वर्णन किया।
हम सबको यह सहर्ष स्वीकार है कि महमूद ने जो-जो बातें कहीं, वे अक्षरशःसही हैं। परन्तु असली मुद्दा कुछ ओर है। जो कुछ उन्होंने कहा, वह कोई नईजानकारी नहीं है। कई सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक गला फाड़-फाड़ कर चिल्लारहे हैं कि गुजरात में मुसलमानों की हालत दिन- प्रतिदिन बदतर होती जा रहीहै। मुस्लिम अपने मोहल्लों में सिमट गये हैं, उन्हेंबैंकिंग व शैक्षणिक सुविधाएंउपलब्ध नहीं हैं और वे समाज की मुख्यधारा से कट गये हैं-ये सभी बातें कईबार, अलग-अलग मंचों से कही जा चुकी हैं। इस विषय पर कई रपटें, लेख औरकिताबें उपलब्ध हैं। समाज और राजनीतिक नेता उन पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, यह एक अलग मुद्दा है।मोदीइन सब तथ्यों से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। उनके सद्भावना उपवास से यहस्पष्ट हो गया है कि उन्हें भारत की विविधता स्वीकार्य नहीं है।जहाँ उन्होंने अन्य लोगों द्वारा भेंट की गयी रंग बिरंगी टोपियों को पहनलिया वहीं एक मुस्लिम मौलवी द्वारा दी गयी टोपी को पहनने से इंकार कर दिया।वे मुसलमानों के साथ भेदभाव करते हैं, यह सारा देश जानता है।
यह दावा किया जाता है किगुजरात के मुसलमान, देश के अन्य राज्यों के मुसलमानों से बेहतरस्थितिमें हैं। तथ्य यह है कि गुजरात के मुसलमानों का जीवन स्तर हमेशा से भारतके अन्य हिस्सों में रहने वाले मुसलमानों से अच्छा रहा है, परन्तु यहाँमुद्दा यह है कि मोदी की ताकत बढ़ने के साथ-साथ, मुसलमानों, और कुछ हद तकईसाईयों, की हालत में गिरावट आई है।
गुजरात के मुसलमान पिछले बारह सालों में मोदी को अच्छी तरह से पहचान गयेहैं। वे मोदी की फासीवादी और साम्प्रदायिक नीतियों से परिचित हैं। मोदी नेमुसलमानों के खिलाफ सन् 2002 के कत्लेआम का नेतृत्व किया था। तब फिर, मोदीको वे बातें बताकर, जो वे पहले से जानते हैं, और मुसलमानों को वह बताकर, जो वे भोग रहे हैं, महमूद आखिर क्या हासिल करना चाहते हैं। ऐसा बताया जारहा है कि मोदी ने महमूद को आश्वासन दिया कि वे उनके द्वारा उठाये गयेमुद्दों पर विचार करेंगे। परन्तु साथ ही, महमूद के भाषण को ब्लेक आउट करदिया गया। इसके विपरीत, मुस्लिम नेतृत्व के एक तबके की स्वीकार्यता हासिलकरने के अपने प्रयास में मोदी सफल रहे। गुजरात के जानेमानेमानवाधिकार कार्यकर्ता डा. बंदूकवाला, जो कि गुजरात के कत्लेआम के स्वयं भी शिकार रहे हैं, कहते हैं, ‘‘इस समयमोदी को केवल प्रधानमन्त्री की कुर्सी दिख रही है और मुसलमानों के कड़ेविरोध के चलते, उनके लिये इस कुर्सी को हासिल करना सम्भव नहीं है। इसलियेवे मजबूरी में कुछ प्रमुख मुस्लिम नेताओं के साथ सार्वजनिक मंचों पर आकर यहदिखाना चाहते हैं कि वे सभी मुसलमानों को स्वीकार्य हैं’’। दुख की बात यहहै कि हमारे नेताओं ने मोदी को ऐसा करने का सुनहरा मौका दे दिया, वह भी इसबचकानी मान्यता के कारण कि वे मोदी को मुस्लिम समुदाय की भावनाओं से अवगतकरना चाहते हैं! क्याजफर महमूदको यह नहीं पता कि इन मुद्दों पर पिछले ग्यारह सालों में गुजरात के मुसलमानों ने असंख्य मौकों परप्रिन्ट व इलेक्ट्रॉनिक मीडियासे बात की है?
मोदी ने सम्मेलनों के आयोजन के लिये जो समय चुना, उससे भी महमूद और उनकेजैसे अन्य नेताओं को सावधान हो जाना चाहिये था। वे भले ही ऐसा मानते रहेंकि सम्मेलनों में भाग लेने से उन्हें समुदाय की माँगों को प्रस्तुत करने कामौका मिलेगा परन्तु तथ्य यह है कि वे मोदी की एक सोची-समझी चाल में फँसरहे हैं, जिसका उद्देश्य है अपनी साख बढ़ाना और मुस्लिम समुदाय के सदस्योंको अपना अनुयायी बनाना। ठीक उसी तरह, जैसे उन्होंने एक बड़े व्यावसायीज़फर सरेसवालाको अपने जाल में फँसा लिया है और अब जफर पूरी वफादारी से मोदी की सेवा मेंजुटे हुये हैं। यह सही है कि महमूद ने भाजपा की वेबसाइट को खंगालकर उसमेंसे मुस्लिम विरोधी साम्रगी को काफी मेहनत से छाँटकर निकाला। परन्तु वे औरउम्मीद भी क्या कर सकते थे? भाजपा, आरएसएस की राजनैतिक शाखा है और अपनेपूरे जीवनकाल में इस पार्टी ने जो भी मुद्दे उठाये हैं, उनसे इसकामुस्लिम-विरोध झलकता रहा है-फिर चाहे वहराममन्दिर आन्दोलनहो, जिसका अन्तबाबरी मस्जिदके ध्वंस से हुआ यागौहत्याका मुद्दा हो या धारा 370 का। हमें यह समझना होगा कि भाजपा स्वतन्त्र नहींहै। वह आरएसएस के अधीन काम करती है और संघ के स्वयंसेवक, भाजपा का संचालनकरते हैं। ऐसे ही स्वयंसेवकों में से एक मोदी हैं।आरएसएस का लक्ष्य है हिन्दू राष्ट्र का निर्माण।स्वाधीनता आंदोलन में आरएसएस का क्या योगदान था? उसने स्वाधीनता आन्दोलन का विरोध कियाऔर कहा कि ‘‘वह आन्दोलन केवल ब्रिटिश विरोधी क्यों है!’’ आरएसएस किस तरह का संविधान चाहता है? भाजपा और एनडीए ने केन्द्र में अपने शासन के दौरान, संविधान का पुनर्वलोकन करने का प्रयास क्यों किया था।
इन सभी प्रश्नों के उत्तरआरएसएसऔर उसके बाल-बच्चों केएजेण्डेपरकेन्द्रित पुस्तकों और लेखों में सहर्ष उपलब्ध हैं। मोदी ने मुस्लिमसमुदाय को अपने साथ लाने के लिये अस्थाई रूप से एक मुखौटा लगा लिया है।उन्होंने गिरगिट की तरह, केवल अपनी त्वचा का रंग बदला है। उनका दिलोदिमागवही है। सन् 2014 के चुनाव के मद्देनजर मोदी अपने मुखौटे के बल पर वोटहासिल करना चाहते हैं। इन प्रयासों को महत्व देने और मोदी द्वारा आयोजितसम्मेलनों में भाग लेने से मुस्लिम नेताओं को कुछ क्षणों की प्रसिद्धि मिलसकती है-शायद कुछ टी.वी. इन्टरव्यूह भी। उन्हें यह संतोष भी हो सकता है किउन्होंने अपनी बात रख दी। परन्तु सच यह है कि मुस्लिम समुदाय के लिये यह एकघोर प्रतिगामी कदम है। यह ऐसा ही है मानो यहूदियों के नेता हिटलर से मिलतेऔर उन्हें बताते कि किस तरह यहूदियों को गैस चेम्बरों में मारा जा रहा है।और यह सोचकर खुश होते की उन्होंने अपनी बात रख दी है।
अब समय आ गया है कि अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्य और उनके नेता, जो सामनेदिख रहा है उसके पीछे झाँककर देखें। वे इस प्रश्न पर विचार करें किआरएसएस का एजेण्डाक्या है और आरएसएस क्यों अल्पसंख्यकों और समाज के अन्य वंचित वर्गों कोदूसरे दर्जे का नागरिक बनाना चाहता है। कुछ पुस्तकों का अध्ययन भी उन लोगोंकी आंखे खोल सकता है, जो यह मानते हैं कि भाजपा अपना दूरगामी एजेण्डा बदलसकती है या यह कि मोदी के सम्मेलन में जाकर भाषण देने से भाजपा कीअल्पसंख्यकों के प्रति नीतियां बदल जायेंगी। इनमें से कुछ पुस्तकें हैं ‘व्ही. ऑर नेशनहुड डिफाइण्ड’ जो अल्पसंख्यकों के विरूद्ध हिटलर द्वारा कीगयी कार्यवाहियों की प्रशंसा करती है और‘ए बंच ऑफ थौट्स’जो मुसलमानों, ईसाईयों और कम्युनिस्टों को हिन्दू राष्ट्र के लिये आन्तरिकखतरा बताती है। इन दोनों पुस्तकों के लेखक आरएसएस के पूर्व प्रमुख एमएसगोलवलकर हैं।
(हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)
Courtesy: http://loksangharsha.blogspot.com/2013/07/blog-post_6.html
Sleeping with the enemy Should minorities get lured by the invitations of Modi And Company?07/04/2013
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